जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की,
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।


मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के,
हमसे तुम कुछ मांगने आओ बहाने फाग के।
मुंह पर नकाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ पर गुलाल,
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की।
मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली,
उठो यारों भरो रंगों से झोली।
बाज़ार, गली और कूचों में ग़ुल शोर मचाया होली ने,
दिल शाद किया और मोह लिया ये जौबन पाया होली ने।
फ़स्ल-ए-बहार आई है होली के रूप में,
सोलह सिंगार लाई है होली के रूप में।
कहीं पड़े न मोहब्बत की मार होली में,
अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में।
अज़ कबीर-ओ-रंग-ए-केसर और गुलाल,
अब्र छाया है सफ़ेद-ओ-ज़र्द-ओ-लाल।
ले के आई है अजब मस्त अदाएँ होली,
मुल्क में आज नए रुख़ से दिखाएँ होली।
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में,
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ मेरे यार होली में।
हम से नज़र मिलाइए होली का रोज़ है,
तीर-ए-नज़र चलाइए होली का रोज़ है।
कहीं अबीर की ख़ुश्बू कहीं गुलाल का रंग,
कहीं पे श से सिमटे हुए जमाल का रंग।
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