मीठी बोली , मीठी जुबान, मकर संक्रांति पर यही है
पैगाम मकर संक्रांति की हार्दिक भकामनाएं.
मेरी पतंग भी तुम हो उसकी ढील भी तुम
मेरी पतंग जहां कटकर गिरे वह मंज़िल भी तुम!!
मन के हर ज़ज़्बात को तस्वीर रंगों से बोलती है
अरमानों के आकाश पर पतंग बेखौफ़ डोलती है !!
सभी दोस्तों को मकर सक्रांति पर्व की शुभकामनाये
आपका दिन शुभ और मंगलमय हो ऐसी कमाना करता हूँ.
ख़त्म कर देंगे हम अपने डर को,
पर चाहना नहीं छोड़ेंगे सनम तुमको.
मत पूछो गम कितने हैं ज़िन्दगी में मेरे,
बस ये जान लो ख़ुशी की वजह तुम ही हो मेरे
मोहब्बत एक कटी पतंग है जनाब..,
गिरती वही है जिसकी छत बड़ी होती है.
मंदिर में बजी घंटियां सजी हैं आरती की
थाली सूरज की रोशनी किरणों के साथ
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे यही है
संक्रांति पर हमारी शुभकामना
बंदे हें हम गुजराती हम पर किसका ज़ोर उतरायण
में उड़े पतंग चारों ओंर लंच में खायें ऊँधिया और
जलेबी गोल-गोल अपना मांजा खुद बनवाने आज
चले हम टेरेस की ओर
काट ना सके कभी कोई पतंग आपकी,
टूटे ना कभी डोर आपके विश्वास की,
छू लों आप जिंदगी के सारे कामयाबी,
जैसे पतंग छूती है ऊंचाइयां आसमान
की मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं.
त्यौहार नहीं होता अपना पराया त्यौहार है
वही जिसे सबने मनाया तो मिला के गुड़ में
तिल पतंग संग उड़ जाने दो दिल हैप्पी मकर संक्रांति.
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